मिथिला पेंटिंग, मधुबनी कला भारतीय चित्रकला की एक अद्भुत शैली, जाने खास बातें

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Mithila Painting in Maithili: भारतक स्वाभिमान बिहारक गौरव मिथिला पेंटिंग, जे समस्त दुनिया मे मधुबनी पेंटिंग के नाम सँ जानल जाइत अछि, बिहारक एकटा प्रमुख चित्रकला शैली अछि, जाहि मे ग्रामीण परिवेश मे प्रकृति, धर्म आ सामाजिक संस्कारक चित्र उकेरल जाइत अछि।

मिथिला पेंटिंग: मधुबनी पेंटिंग मिथिला की एक फोक पेंटिंग है, जो मिथिला के नेपाल और बिहार के क्षेत्र में बनाई जाती है। मिथिला पेंटिंग (Mithila Painting) में मिथिलांचल की संस्कृति कला को दर्शाया जाता है। मिथिला पेंटिंग को मधुबनी पेंटिंग और मधुबनी आर्ट (Madhubani Art) भी कहा जाता है। आज के इस लेख में हम मधुबनी पेंटिंग क्या है, इसका इतिहास क्या है, कैसे यह विश्व में प्रसिद्ध हुई, इसकी क्या खासियत है आदि के बारे में अध्ययन करेंगे।

Mithila Painting in Hindi

मधुबनी कला (या मिथिला पेंटिंग) भारतीय चित्रकला की एक शैली है, जो भारत के उत्तर बिहार में मिथिला क्षेत्र में प्रचलित है।साथ ही ये नेपाल में भी की जाती हैं। यह पेंटिंग विभिन्न प्रकार के उपकरणों के साथ की जाती है, जिसमें उंगलियां, टहनियाँ, ब्रश, निब-पेन और माचिस और प्राकृतिक रंगों और रंजक का उपयोग किया जाता है। उत्तर भारत में बिहार के मिथिला क्षेत्र की महिलाओं ने कम से कम 14 वीं शताब्दी के बाद से घरेलू अनुष्ठानों के अवसर पर अपने घरों की आंतरिक दीवारों पर रंगीन शुभ चित्रों को चित्रित किया है।

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यह प्राचीन परंपरा, विशेष रूप से विवाह के लिए विस्तृत, आज भी जारी है। हालाँकि 1968 में भीषण सूखे के बीच, कुछ महिलाओं ने पारिवारिक आय के नए स्रोत के रूप में बिक्री के लिए कागज पर पेंट करना शुरू कर दिया। पहले तो वे केवल पारंपरिक चित्रों – देवताओं और देवी-देवताओं और प्रतीकात्मक चिह्नों को दीवार चित्रों से स्थानांतरित करते थे।

About Madhubani Painting in Hindi

मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। अगले 30 वर्षों में, दीवार चित्रों की विशिष्ट शैलियों और परंपराओं को बनाए रखते हुए, उन्होंने कई नए विषयों को चित्रित करना शुरू किया; रामायण के एपिसोड, स्थानीय महाकाव्य और किस्से, अनुष्ठान गतिविधियां, ग्राम जीवन, यहां तक ​​कि आत्मकथात्मक चित्र भी और 2000 के बाद से, उन्होंने स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं को चित्रित करना शुरू किया: बाढ़, आतंकवाद, ग्लोबल वार्मिंग, और सबसे हाल ही में, नारीवादी मुद्दों जैसे कि पितृसत्ता, दहेज, दुल्हन जलना, कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों और लड़कों के लिए चिकित्सा देखभाल और शिक्षा, आदि।

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मिथिला पेंटिंग इतिहास

मधुबनी पेंटिंग की शुरुआत कैसे हुई?

मिथिला पेंटिंग की शुरुआत रामायण काल में हुई थी। रामायण काल में मिथिला के राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह में उन्होंने अपने जनता को आदेश दिया कि सब लोग अपने घरों की दीवारों और आंगनों पर पेंटिंग बनाएं, जिसमें मिथिला नगरी की संस्कृति की झलक हो। जिसे देख कर अयोध्या से आए बारातियों को मिथिला की महान संस्कृति का पता चलेगा।

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मधुबनी पेंटिंग का इतिहास (History of Madhubani Painting in Hindi)

मधुबनी पेंटिंग्स (Madhubani Painting) का इतिहास काफ़ी रोजक जनक है। बिहार (Bihar) के मिथिलांचल में मधुबनी पेंटिंग्स कई सालों से चली आ रही हैं, पहले ये केवल गांवो तक ही सिमित था लेकिन 1934 में जब मिथिलांचल में बड़ा भूकंप आया था, जिससे वहां काफी नुकसान हुआ। उस समय मधुबनी के ब्रिटिश ऑफिसर विलियम आर्चर जब भूकंप से हुई तबाही का मुआयना करने गए तो उन्हें कुछ पेंटिंग्स दिखाई दी, जो उनके लिए नई और अनोखी थीं। उन्होंने इससे पहले कभी भी इस तरह की पेंटिंग्स नहीं देखि थी।

इन पेंटिंगों को देखकर उन्होंने इसकी तुलना मीरो और पिकासो जैसे मॉडर्न आर्टिस्ट से की और कहा की, ‘भूकंप से गिर चुके घरों की टूटी दीवारों पर जो पेंटिंग्स हैं, वो मीरो और पिकासो जैसे मॉडर्न आर्टिस्ट की पेंटिंग्स जैसी थी’। फिर उन्होंने इन पेंटिंग्स की ब्लैक एंड वाइट तस्वीरें निकलीं, जो मधुबनी पेंटिंग्स की अब तक की सबसे पुरानी तस्वीरें मानी जाती हैं। उन्होंने 1949 में ‘मार्ग’ के नाम से एक आर्टिकल लिखा था’, जिसमें मधुबनी पेंटिंग की खासियत बताई थी। इसके बाद पूरी दुनिया को मधुबनी पेंटिंग की खूबसूरती का अहसास हुआ।

मधुबनी पेंटिंग किस राज्य से संबंधित है?

मधुबनी पेंटिंग बिहार राज्य से संबंधित है। साथ ही इसे इसका संबंध नेपाल के जनकपुर से भी है। मिथिला पेंटिंग बिहार में खासकर मिथिलांचल के दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, सिरहा, और धनुषा जैसे जिलों की मेन फोक पेंटिंग है। शुरुआत में ये पेंटिंग्स घर के आंगन और दीवारों पर रंगोली की तरह बनाई जाती थीं। समय के साथ धीरे-धीरे ये कपड़ों, दीवारों और कागजों पर पेंटिंग की जाने लगी।

मिथिला की औरतों की शुरू की गईं इन फोक पेंटिंग्स को पुरुषों ने भी अपना लिया। शुरू में ये पेंटिंग्स मिट्टी से लीपी झोपड़ियों में देखने को मिलती थीं, लेकिन अब इन्हें कपड़े या पेपर के कैनवस पर बनाया जाता है। इन पेंटिंग्स में खासतौर पर देवी-देवताओं, लोगों की आम जिंदगी और नेचर से जुड़ी पेंटिंग्स होती हैं। मिथिला पैन्टिन्ग में सूरज, चंद्रमा, पनघट, तुलसी और शादी जैसे नजारे को दर्शाया जाता है।

मधुबनी पेंटिंग कैसे बनाते हैं?

मधुबनी पेंटिंग्स दो प्रकार से बनाई जाती है। एक भित्ति-पेंटिंग जो घर की दीवारों (मैथिली में दीवारों को भित्ति भी कहते हैं) पर बनाई जाती है और दूसरी अरिपन, जो घर के आंगन में बनाई जाती है। इन पेंटिंग्स को माचिस की तीली और बांस की कलम का उपयोग कर के बनाया जाता है।

मिथिला पेंटिंग में कौन से रंग इस्तेमाल होते है?

मिथिला पेंटिंग में चटख रंगों का खूब इस्तेमाल होता है, जैसे गहरा लाल, हरा, नीला और काला। चटख रंगों को बनाने के लिए अलग-अलग रंगों के फूलों और उनकी पत्तियों को तोड़कर उन्हें पीसा जाता है, फिर उन्हें बबूल के पेड़ की गोंद और दूध के साथ घोला जाता है। पेंटिंग्स में कुछ हल्के रंग भी यूज होते हैं, जैसे पीला, गुलाबी और नींबू रंग। लाल रंग के लिए पीपल की छाल यूज की जाती है।

आज के समय में मधुबनी पेंटिंग की डिमांड बहुत बढ़ चुकी है जिसे देख़ते हुए अब कलाकार आर्टीफीशियल पेंट्स का भी इस्तेमाल करने लगे हैं और लेटेस्ट कैनवस पर बनाने लगे हैं।

मधुबनी कला की शैलियाँ ( Types of Mithila Painting)

मधुबनी कला की पाँच विशिष्ट शैलियाँ हैं: भरणी, काचनी, तांत्रिक, गोडना और कोहबर। 1960 के दशक में भरनी, काचनी और तांत्रिक शैली मुख्य रूप से ब्राह्मण और कायस्थ महिलाओं द्वारा की जाती थी, जो भारत और नेपाल में ‘उच्च जाति’ की महिला हैं।

उनके विषय मुख्य रूप से धार्मिक थे और उन्होंने अपने चित्रों में देवी-देवताओं, पौधों और जानवरों को चित्रित किया। आजकल मधुबनी कला एक भूमंडलीकृत कला रूप बन गई है, इसलिए जाति व्यवस्था के आधार पर काम में कोई अंतर नहीं है। वे सभी पांच शैलियों में काम करते हैं। मधुबनी कला को दुनिया भर में अपना परचम फैलाया हैं।

मधुबनी पेंटिंग कलाकार और पुरस्कार ( Awards )

मधुबनी पेंटिंग को 1969 में आधिकारिक मान्यता मिली जब सीता देवी को बिहार सरकार द्वारा राज्य पुरस्कार मिला। जगदंबा देवी मिथिला पेंटिंग में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाली मिथिला की पहली कलाकार थीं। 1975 में, भारत के राष्ट्रपति ने जगदंबा देवी को पद्मश्री पुरस्कार और मधुबनी के पास जितवारपुर गाँव की सीता देवी को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया।

मिथिला पेंटिंग: प्राचीन कला रूप की असाधारण जीवन शक्ति की झलक प्रदान करता है। अपने विशिष्ट सौंदर्यशास्त्र को बनाए रखते हुए, और तेजी से वैश्विक कला की दुनिया के दबाव को समझते हुए, सभी जाति के चित्रकार पारंपरिक और समकालीन विषयों पर कला के शानदार काम कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में वे ग्रामीण भारत में महिला सशक्तिकरण और सामाजिक परिवर्तन के लिए भी योगदान कर रहे हैं।

FAQs

मधुबनी पेंटिंग किस राज्य में है?

मधुबनी पेंटिंग बिहार के मधुबनी राज्य से है।

मधुबनी पेंटिंग का दूसरा नाम क्या है?

मधुबनी पेंटिंग का दूसरा मिथिला पेंटिंग है।

मधुबनी पेंटिंग कितने प्रकार की होती है?

मधुबनी कला (पेंटिंग) की पाँच विशिष्ट शैलियाँ हैं: भरणी, काचनी, तांत्रिक, गोडना और कोहबर।

मिथिला पेंटिंग की खोज किसने की थी?

माना जाता है की मिथिला पेंटिंग की खोज ब्रिटिश अधिकारी विलियम जी आर्चर ने 1934 में बिहार के मधुबनी राज्य में की थी।

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