Friday, October 31

🕉️ देवउठनी एकादशी 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व और संपूर्ण पूजा विधि

Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के कैलेंडर में सबसे महत्वपूर्ण और शुभ दिनों में से एक है। यह वह दिन है जब सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु अपनी चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। इसी के साथ चातुर्मास का समापन होता है और विवाह सहित सभी मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं।

Devuthani Ekadashi 2025, Dev Uthani Ekadashi Kab Hai: साल 2025 में, भक्त इस महत्वपूर्ण पर्व को मनाने की तैयारी कर रहे हैं। देवउठनी एकादशी के बारे में सभी आवश्यक जानकारी, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि यहाँ विस्तार से दी गई है:

📅 Dev Uthani Ekadashi मुख्य तिथि और शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)

देवउठनी एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है।

विवरणतिथि और समय (2025)
देवउठनी एकादशी की तिथिशनिवार, 1 नवंबर 2025
एकादशी तिथि प्रारंभ1 नवंबर 2025 को सुबह 9 बजकर 11 मिनट पर
एकादशी तिथि समाप्त2 नवंबर 2025 को सुबह 7 बजकर 31 मिनट पर
व्रत पारण का समय (व्रत खोलने का)2 नवंबर 2025 को दोपहर 1 बजकर 11 मिनट से 3 बजकर 23 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त (पूजा के लिए सबसे शुभ)1 नवंबर 2025 को सुबह 11 बजकर 42 मिनट से 12 बजकर 27 मिनट तक

ध्यान दें: चूँकि एकादशी तिथि सूर्योदय के समय (उदया तिथि) 1 नवंबर को मान्य है, इसलिए व्रत इसी दिन रखा जाएगा और अगले दिन यानी 2 नवंबर को व्रत का पारण किया जाएगा।

🙏 पूजा विधि: ऐसे करें श्री हरि को जागृत

देवउठनी एकादशी (DevUthani Ekadashi 2025) की पूजा का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु को प्रतीकात्मक रूप से उनकी गहरी निद्रा (योगनिद्रा) से जगाना है।

  1. प्रातःकालीन अनुष्ठान: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ, अधिमानतः पीले रंग के वस्त्र पहनें, क्योंकि यह रंग भगवान विष्णु को प्रिय है।
  2. मंडप तैयार करें: पूजा स्थल पर गन्ने (गन्ना) के डंडों से एक छोटा सा मंडप तैयार करें।
  3. पूजा और स्थापना: मंडप के अंदर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। आंगन या पूजा स्थल पर भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएँ और उन्हें ढंक दें।
  4. अर्पण: भगवान को मौसमी फल, गन्ना, सिंघाड़ा, शकरकंद, और मिठाइयाँ अर्पित करें।
  5. भगवान को जगाना: शाम के समय या शुभ मुहूर्त में, मुख्य अनुष्ठान शुरू होता है। भक्त शंख और घंटी बजाते हैं और “ऊं नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करते हुए भक्ति गीत गाते हैं। घी का एक दीपक जलाया जाता है, जिसे रात भर प्रज्वलित रखा जाता है, जो देवताओं के जागरण का प्रतीक है।
  6. व्रत और पारण: भक्त कठोर व्रत (उपवास) रखते हैं। यह निर्जल व्रत (बिना पानी के), या फलाहार (केवल फल खाकर) हो सकता है। व्रत में चावल, अनाज और दालों का सेवन पूर्णतः वर्जित होता है। अगले दिन पारण के शुभ समय में व्रत खोला जाता है।

✨ महत्व: चातुर्मास का समापन और मांगलिक कार्यों की शुरुआत

देवउठनी एकादशी का धार्मिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टि से अत्यंत महत्व है:

  • देवों का जागरण: मान्यता है कि सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु इस दिन अपनी चार महीने की योगनिद्रा से जागकर पुनः सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं।
  • शुभ कार्यों की शुरुआत: भगवान विष्णु के जागने के साथ ही विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और अन्य सभी मांगलिक (शुभ) कार्यों पर लगा प्रतिबंध समाप्त हो जाता है। यह दिन भारत में विवाह के मौसम की आधिकारिक शुरुआत का प्रतीक है।
  • तुलसी विवाह: देवउठनी एकादशी के ठीक अगले दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है, जिसमें तुलसी (देवी लक्ष्मी का रूप) और शालिग्राम (भगवान विष्णु का रूप) का प्रतीकात्मक विवाह कराया जाता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: शास्त्रों के अनुसार, इस दिन व्रत और पूजा करने से भक्त सभी पापों से मुक्त होते हैं, जीवन में सुख-समृद्धि आती है, और उन्हें मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है।

यह एकादशी आध्यात्मिक चेतना, नवीनीकरण और संसार में प्रकाश और सकारात्मकता की वापसी का उत्सव है।

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